एआरबी टाइम्स ब्यूरो
शिमला। हिमाचल प्रदेश सरकार वन भूमि पर अतिक्रमण के मामलों में फलों से लदे सेब के पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। सरकार ने हिमाचल हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की है, जिसमें अतिक्रमण वाली वन भूमि से सेब के पेड़ों को हटाने के निर्देश दिए गए थे। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है कि फलों से लदे पेड़ों की कटाई पर फिलहाल रोक लगाई जाए। सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने बताया कि यह आदेश न केवल पेड़ों की रक्षा से जुड़ा है बल्कि यह हिमाचल की संस्कृति और आजीविका से भी जुड़ा हुआ मामला है।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई पेड़ों की कटाई
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के कुमारसैन और कोटखाई जैसे क्षेत्रों में सैकड़ों सेब के पेड़, जो फलों से लदे थे, वन विभाग द्वारा काटे जा चुके हैं। यह कार्रवाई हाईकोर्ट के आदेश के तहत की जा रही है। इससे प्रभावित स्थानीय लोग अब इस फैसले के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि वर्तमान वर्षा ऋतु में लोगों को घरों से बेदखल करना या पेड़ों को काटना उपयुक्त नहीं है। इस प्रकार की कार्रवाई से न केवल पर्यावरण पर असर पड़ रहा है, बल्कि लोगों की जीविका पर भी संकट खड़ा हो गया है। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है और संभावना है कि शुक्रवार को इस पर सुनवाई हो सकती है।
शिमला के चैथला गांव में 22 हेक्टेयर वन भूमि से काटे गए सेब के 4500 पेड़
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला स्थित कोटखाई उपमंडल के चैथला गांव में वन विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश के तहत 22 हेक्टेयर वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया है। यह कार्रवाई पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सात दिन तक चली, जिसमें लगभग 4,500 सेब के फलदार पौधों को काटा गया। यह पहली बार है जब शिमला के सेब बहुल क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई है। इससे पहले अधिकतर कार्रवाई छोटे बागवानों तक सीमित रहती थी, लेकिन अब प्रभावशाली और बड़े कब्जाधारकों पर भी शिकंजा कसा गया है।
