सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अतिक्रमित वन भूमि पर लगे सेब के पेड़ों की कटाई पर रोक

नई दिल्ली/शिमला। हिमाचल प्रदेश के किसानों और सेब उत्पादकों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 2 जुलाई 2025 को दिए उस आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी है, जिसमें अतिक्रमित वन भूमि पर लगे सेब के पेड़ों को काटने के निर्देश दिए गए थे। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने यह आदेश पूर्व उपमहापौर टिकेंद्र सिंह पंवर की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। इस याचिका की पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वकील सुभाष चंद्रन कर रहे थे।

याचिका में क्या कहा गया:
याचिका में तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट का आदेश मनमाना और असंगत है, जो संविधान, पर्यावरणीय संतुलन और वैधानिक सिद्धांतों के विरुद्ध है। मानसून के दौरान बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई से भूस्खलन और मिट्टी के कटाव का खतरा बढ़ सकता है। हिमाचल प्रदेश एक पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील और भूकंप प्रभावित क्षेत्र है। सेब के बाग न केवल अतिक्रमण हैं, बल्कि ये मृदा को स्थिर रखने, स्थानीय वन्यजीवों को आवास देने और राज्य की आर्थिक रीढ़ माने जाते हैं। इससे हजारों किसानों की आजीविका जुड़ी है।

29 जुलाई को प्रदर्शन:
हिमाचल किसान सभा और सेब उत्पादकों ने इस मामले पर 29 जुलाई को शिमला सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन का एलान किया है। उनकी मांग है कि सरकार बेदखली, घरों की तालाबंदी और तोड़फोड़ पर रोक लगाए।

चैथला गांव में 22 हेक्टेयर वन भूमि से काटे गए थे सेब के 4500 पेड़

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के कोटखाई उपमंडल के चैथला गांव में हाल ही में अतिक्रमण हटाने की बड़ी कार्रवाई की गई थी। वन विभाग ने हाईकोर्ट के आदेश के तहत 22 हेक्टेयर वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया था। इस कार्रवाई के दौरान करीब 4,500 सेब के फलदार पेड़ों को काटा गया।यह अभियान लगातार सात दिन तक चला और इसमें पुलिस और प्रशासन की टीमें शामिल रहीं। यह पहली बार है जब शिमला जैसे सेब बहुल क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाया गया। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यह कार्रवाई हिमाचल हाईकोर्ट के 2 जुलाई 2025 के आदेश के अनुपालन में की गई है, जिसमें अतिक्रमित वन भूमि को खाली कराने और वहां वन प्रजातियों के पौधे लगाने के निर्देश दिए गए थे।

 

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