दरकाली में देव परंपराओं के बीच लक्ष्मी नारायण शालनू देवता का जन्मदिन मनाया गया, दकनौल मेला आज से

एआरबी टाइम्स ब्यूरो 
रामपुर बुशहर। हिमाचल प्रदेश के रामपुर क्षेत्र की दरकाली पंचायत में मंगलवार को देवता लक्ष्मी नारायण शालनू का जन्मदिन बड़ी धूमधाम और पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। इस शुभ अवसर पर सुबह हवन का आयोजन किया गया, जिसके बाद दोपहर एक बजे केक काटकर देवता के जन्मोत्सव को विशेष रूप से मनाया गया। देवता के गुर ने ढाई फेरे लगाकर पारंपरिक नाटी डाली, जिसके बाद वहां उपस्थित श्रद्धालुओं ने भी खुशी जाहिर करते हुए नाटी में भाग लिया। इस आयोजन के साथ ही प्राचीन एवं ऐतिहासिक दकनौल मेले की भी शुरुआत हो गई है। हालांकि, विधिवत शुरुआत आज होगी।

🤝 देव शक्तियों का संगम: पहली बार दरकाली पहुंचे कालेश्वर देवता

इस बार मेले की शोभा उस समय और बढ़ गई जब देवटी के प्रसिद्ध देवता कालेश्वर अपने देवलुओं के साथ दरकाली पहुंचे। मंगलवार शाम को कालेश्वर देवता का भव्य आगमन हुआ, जहां देवता लक्ष्मी नारायण शालनू ने उनका पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। हालांकि दोनों देवताओं का मिलन पहले भी अन्य स्थानों जैसे की फाग में हो चुका है, लेकिन दरकाली की धरती पर यह पहला ऐतिहासिक मिलन है। मंदिर परिसर में दो महाशक्तियों के इस मिलन को देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हुए।

💃 फुहालों की नाटी रहेगी मुख्य आकर्षण

बुधवार को मेले के पहले दिन फुहालों की नाटी विशेष आकर्षण रहेगी चूंकि यह मेला पारंपरिक रूप से फुहालों (भेड़पालकों) के सम्मान में मनाया जाता है, इसलिए सबसे पहले नाटी का हक भी उन्हें ही प्राप्त होता है। परंपरा अनुसार दोपहर बाद फुहाल देवता लक्ष्मी नारायण शालनू को मंदिर से नेगी परिवार के घर तक ले जाते हैं, जहां कुछ समय व्यतीत करने के बाद देवता को पुनः मंदिर लाया जाता है। इस संपूर्ण यात्रा के दौरान फुहाल नाचते-गाते देवता के साथ चलते हैं, जो देव परंपरा का अद्भुत उदाहरण है।

🌸 लोसर और ब्रह्मकमल की मालाएं आस्था का प्रतीक

मंदिर पहुंचने पर देवता को विराजमान किया जाता है और फिर फुहाल श्रद्धा पूर्वक नाटी डालते हैं। इस दौरान वे लोसर और ब्रह्मकमल से बनी पारंपरिक मालाएं देवता को अर्पित करते हैं, जिन्हें वे एक दिन पहले ही तैयार कर लेते हैं। उसके बाद मेले में आए लोगों को मालाएं पहनाई जाती है। इन मालाओं के बदले श्रद्धालु अपनी आस्था अनुसार दक्षिणा (पैसे) अर्पित करते हैं। यह अनोखी परंपरा हिमाचल की लोक संस्कृति और देव आस्था की गहराई को दर्शाती है।

📷 देव संस्कृति को संजोता है दकनौल मेला

दकनौल मेला न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि यह हिमाचल की जीवंत लोक परंपरा और देव संस्कृति को भी सहेजता है। इस मेले में हर वर्ग, हर उम्र के लोग बड़ी श्रद्धा और उत्साह से भाग लेते हैं। देवताओं का संगम, नाटी, मालाएं और भक्ति से सराबोर वातावरण इस आयोजन को एक धार्मिक पर्व का रूप दे देता है, जो सदियों से चली आ रही परंपराओं का प्रतीक है।

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