Himachal Pradesh : सेब की मिठास से रोजगार तक: छौहारा की महिलाओं की अनोखी पहल

एआरबी टाइम्स ब्यूरो 

शिमला। हिमाचल प्रदेश का शिमला जिला जहां एक ओर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है, वहीं अब यहां की महिलाएं सेब की बर्फी से अपनी एक नई पहचान बना रही हैं। जय देवता जाबल नारायण स्वयं सहायता समूह की महिलाएं ऑर्गेनिक तरीके से खास सेब की बर्फी तैयार कर लोगों तक पहुंचा रही हैं, जो स्वाद के साथ रोजगार का जरिया भी बन रही है। छौहारा विकास खंड की यह पहल अब पूरे जिले में चर्चा का विषय है। समूह की ओर से बनाई गई सेब की बर्फी को स्थानीय और बाहरी ग्राहक बेहद पसंद कर रहे हैं। हर महीने करीब 35 हजार रुपये की बर्फी बेची जा रही है।

सेब की बर्फी कैसे बनती है?

समूह की सदस्य सपना बताती हैं कि सबसे पहले अच्छे गुणवत्ता वाले सेब जुटाए जाते हैं। उन्हें कई बार स्वच्छ पानी से धोने के बाद उनका पल्प निकाला जाता है। पल्प को धीमी आंच पर पकाया जाता है और उसमें ड्राई फ्रूट्स मिलाए जाते हैं। जब मिश्रण गहरा भूरा रंग ले लेता है, तब उसे प्लेट में डालकर तीन-चार दिनों तक सेट होने दिया जाता है। बर्फी को छोटे टुकड़ों में काटकर डिब्बों में पैक किया जाता है।

बिना फंगस के एक साल तक सुरक्षित
जय देवता जाबल नारायण समूह का दावा है कि यह बर्फी बिना किसी प्रिज़रवेटिव के एक साल तक खराब नहीं होती और इसका स्वाद भी बरकरार रहता है। यही कारण है कि इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।

आकांक्षी हाट में उपलब्ध है बर्फी
अगर आप सेब की बर्फी का स्वाद लेना चाहते हैं, तो रिज मैदान के पास पद्मदेव परिसर में लगे ‘आकांक्षी हाट’ में जय देवता जाबल नारायण समूह के स्टॉल से इसे खरीदा जा सकता है। इसका एक डिब्बा ₹325 में बेचा जा रहा है। इसके अलावा ऑनलाइन ऑर्डर की सुविधा भी उपलब्ध है।

मटर की खेती से बर्फी तक का सफर
इस प्रेरणादायक सफर की शुरुआत 2019 में हुई जब जाबली गांव की 5 महिलाओं ने एनआरएलएम के तहत 15,000 रुपये की सहायता से मटर की खेती शुरू की। पहले साल ही उन्होंने 75,000 रुपये की कमाई की। अगले साल ढाई लाख की आय हुई। खेती के बाद समूह ने एप्पल सीडर विनेगर, जैम, चटनी, ड्रायड फ्रूट्स और फिर सेब की बर्फी का निर्माण शुरू किया।

सरकार और प्रशासन से मिल रहा सहयोग
समूह की प्रधान आशु ठाकुर बताती हैं कि सेब की बर्फी की मांग कुल्लू और कामधेनु जैसे इलाकों में भी बढ़ रही है। प्रशासन की ओर से समय-समय पर मेलों और हाट में मुफ्त स्टॉल देने से उन्हें बड़ा फायदा मिला है। एनआरएलएम मिशन छौहारा के एग्जीक्यूटिव कुशाल सिंह ने कहा कि इस तरह के स्वयं सहायता समूह जनजातीय क्षेत्रों में भी महिला सशक्तिकरण का आधार बनेंगे। शिमला के उपायुक्त अनुपम कश्यप ने भी कहा कि जिला के स्वयं सहायता समूहों का कार्य प्रशंसनीय है और उनकी आजीविका को बढ़ावा देने के लिए प्रशासन हरसंभव सहायता उपलब्ध करवाता रहेगा।


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