एआरबी टाइम्स ब्यूरो
चंडीगढ़। सेक्टर-10ए की 70 वर्षीय पूर्व चीफ आर्किटेक्ट सुमित कौर साइबर ठगी का शिकार हो गईं। ठगों ने खुद को ट्राई, सीबीआई और सुप्रीम कोर्ट का वरिष्ठ अधिकारी बताकर उन्हें मानसिक दबाव में डालते हुए करीब 2.5 करोड़ रुपये की ठगी कर ली। पीड़िता के अनुसार, 3 मई को उन्हें एक कॉल आया जिसमें खुद को ट्राई का अधिकारी बताने वाले व्यक्ति ने आरोप लगाया कि उनके मोबाइल नंबर का इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधियों में हो रहा है। इसके बाद महिला को वॉट्सएप कॉल पर एक अन्य व्यक्ति से जोड़ा गया, जिसने खुद को सीबीआई का डीआईजी बताया। उसने महिला को बताया कि उनका नाम मनी लॉन्ड्रिंग केस में आ रहा है, जिसमें जेट एयरवेज के सीईओ का भी नाम है।
महिला को एक फर्जी गिरफ्तारी वारंट और मुंबई के कैनरा बैंक में उनके नाम से खोले गए एक फर्जी खाते की जानकारी दी गई। 4 मई को उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट’ में होने की बात कहकर हर समय मोबाइल ऑन रखने के निर्देश दिए गए। साथ ही, बैंक खातों, बीमा, म्यूचुअल फंड, पीपीएफ और डाकघर की जमाओं की जानकारी भी मांगी गई। 5 मई को उन्हें वीडियो कॉल पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से मिलवाने का नाटक किया गया और एक फर्जी कोर्ट ऑर्डर दिखाया गया, जिसमें संपत्ति 48 घंटे के लिए ‘जांच खाते’ में ट्रांसफर करने का आदेश था। लगातार कॉल और गिरफ्तारी की धमकियों के चलते महिला ने डर के मारे लगभग 2.5 करोड़ रुपये विभिन्न खातों में ट्रांसफर कर दिए। कुछ दिन बाद जब सभी नंबर बंद हो गए, तब उन्हें ठगी का पता चला।
कैसे होता है ‘डिजिटल अरेस्ट’ फ्रॉड?
फोन या व्हाट्सएप कॉल से संपर्क:
ठग खुद को सरकारी संस्था का अधिकारी बताकर कहते हैं कि आपके मोबाइल नंबर, बैंक अकाउंट या दस्तावेज़ों का उपयोग गैरकानूनी कामों में हो रहा है।डर और धमकी:
पीड़ित को बताया जाता है कि उनके खिलाफ FIR हो चुकी है, गिरफ्तारी वारंट जारी है, और उन्हें तुरंत सहयोग करना होगा वरना उन्हें ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर लिया जाएगा।फर्जी वीडियो कॉल/ऑर्डर:
उन्हें नकली कोर्ट ऑर्डर, फर्जी सुप्रीम कोर्ट या CBI अधिकारियों की वीडियो कॉल्स दिखाई जाती हैं, जिससे वे भरोसा कर लें।संपत्ति और बैंक डिटेल्स की मांग:
ठग कहते हैं कि जांच के लिए सभी बैंक, म्यूचुअल फंड, बीमा और संपत्ति की जानकारी देनी होगी और रकम “सीक्रेट सुपरविजन अकाउंट” में ट्रांसफर करनी होगी।कंट्रोल और निगरानी:
पीड़ित से कहा जाता है कि वे हर समय फोन ऑन रखें, किसी से बात न करें और दिए गए निर्देशों का पालन करें।
असलियत क्या है?
- भारत में किसी व्यक्ति को डिजिटल तरीके से न तो ‘अरेस्ट’ किया जा सकता है, न ही संपत्ति यूं ही ट्रांसफर करवाई जा सकती है।
गिरफ्तारी की प्रक्रिया हमेशा भौतिक रूप से पुलिस द्वारा, वैध वारंट के साथ होती है।
कोर्ट या सरकारी एजेंसियां कभी भी फोन या व्हाट्सएप पर व्यक्तिगत जानकारी या पैसे ट्रांसफर करने को नहीं कहतीं।
बचाव कैसे करें?
- ऐसे कॉल्स को तुरंत काटें और नंबर ब्लॉक करें।
कभी भी अपनी पर्सनल, बैंक या पहचान संबंधी जानकारी शेयर न करें।
किसी सरकारी एजेंसी का हवाला देने पर उस एजेंसी की वेबसाइट या लोकल थाने से पुष्टि करें।
शक होने पर तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 या https://cybercrime.gov.in पर शिकायत करें।