एआरबी टाइम्स ब्यूरो
शिमला। शैम रॉक रोजेज स्कूल, कच्चीघाटी में शुक्रवार को बैसाखी पर्व बड़े हर्षोल्लास और सांस्कृतिक रंगों के साथ मनाया गया। इस अवसर पर स्कूल की प्रधानाचार्य प्रीति चुट्टानी ने बच्चों को बैसाखी का ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व समझाया। उन्होंने बताया कि बैसाखी न केवल रबी की फसल की कटाई का पर्व है, बल्कि यह पंजाबी नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी है। बैशाख माह के पहले दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जिससे ऋतु परिवर्तन होता है और गर्मियों का आगमन माना जाता है। इस दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में अरदास करते हैं और नगर कीर्तन, शोभायात्रा तथा पारंपरिक लोक नृत्य गिद्दा और भंगड़ा में भाग लेते हैं। बैसाखी का ऐतिहासिक महत्व भी है। वर्ष 1699 में, सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री केसगढ़ साहिब, आनंदपुर में खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह पंथ मानवता की सेवा, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए बना था। उन्होंने बताया कि जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा किए गए अत्याचार चरम पर थे और गुरु तेग बहादुर जी को दिल्ली में शहीद कर दिया गया, तब गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों को संगठित कर खालसा पंथ की नींव रखी। इस ऐतिहासिक घटना के कारण बैसाखी का पर्व सिख समुदाय के लिए एक नए युग की शुरुआत माना जाता है। इस मौके पर स्कूल में बच्चों द्वारा चित्रकला, नृत्य और गीतों के माध्यम से बैसाखी की परंपराओं को जीवंत किया गया।