एआरबी टाइम्स ब्यूरो
रामपुर बुशहर(शिमला)। हिमाचल किसान बागवान यूनियन के अध्यक्ष बिहारी सेवगी और उपाध्यक्ष विरेंद्र भलूनी ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि वे पंजाब मॉडल को अपनाएं और मुजारे व शामलात भूमि पर गुजर-बसर करने वालों को मालिकाना हक देने के लिए केंद्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से विशेष अनुमति प्राप्त करें।
उन्होंने उदाहरण दिया कि पंजाब सरकार ने 62,000 से अधिक हेक्टेयर वन भूमि को कृषि भूमि में बदलकर लोगों को मालिकाना टाइटल प्रदान किया था। उसी तरह, हिमाचल में भी 1978 के बाद बंदोबस्त के दौरान जिन लोगों ने शामलात या कॉमन विलेज लैंड पर जीवन शुरू किया, उन्हें भी वैध रूप से जमीन का मालिक बनाया जाए।
उन्होंने कहा कि 2002 में धूमल सरकार ने हिमाचल प्रदेश लैंड रेवेन्यू एक्ट, 1954 में धारा 163-A जोड़कर गरीब और सीमांत किसानों को मालिकाना हक देने की कोशिश की थी। लेकिन यह धारा पूनम गुप्ता द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद 5 अगस्त को निरस्त कर दी गई।
उन्होंने यह भी बताया कि उस समय प्रदेश के 1,67,000 से अधिक लोगों ने करीब 24,000 हेक्टेयर भूमि पर मालिकाना हक के लिए आवेदन दिए थे। अगर हिमाचल सरकार भूमि नहीं दे सकती, तो वह पंजाब सरकार की तरह केंद्र सरकार से अनुमति लेकर यह काम कर सकती है।
साथ ही, उन्होंने लोगों को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत एफआरए कमेटियों के गठन की सलाह दी, ताकि भूमिहीन लोग अपने हक की लड़ाई कानूनी रूप से लड़ सकें।
